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Saturday 24 November 2012

विषेष रिपोर्ट रचा नया ईतिहासः महथाडीह

 विषेष रिपोर्ट   रचा नया ईतिहासः महथाडीह    

    
                
जिला मुख्यालय कोडरमा से महज 11 कि0मी0 की दुरी पर डोमचांच प्रखण्ड के अंतर्गत बसा गांव महथाडीह वर्तमान मे पुरे क्षेत्र के लिए एक मिशाल कायम किया है। सन् 1986 के पुर्व से ही ईस गाॅव में शराब बनाने की एक प्रथा चली। बेरोजगारी और भुख की मार को झेलता यह गांव पुरे डोमचांच प्रखण्ड मे शराब बनाने में प्रथम स्थान रखता था। ईस गांव मे शराब बनने के कारण दिन भर लोग नशे मे रहते थे। ईस गांव से हो कर कोई भी आम व्यक्ति नही गुजरता था। कारण यह था कि शराब की ईतनी बु आती थी कि  आने जाने वालों को भी नशा होने लगता था। ईतना ही नही रोज किसी ना किसी घर मे कोई बहु तो किसी की बेटी के साथ छेड छाड व मारपीट होना आम बात हो गई थी। दुर दुर के लोग ईस गांव मे अपनी बेटी बस ईस लिए नही देना चाहते थे कि उस गांव मे शराब बनता है। ईस गांव मे लगभग 80 प्रतिशत घरों मे महुआ का शराब बनाया जाता था। कुछ दशक बाद ईस गांव के लोंगों ने पैसे कमाने के लिए जहरीले शराब बनाने लगे। महुआ को शुद्ध रुप से ना गला कर उसमें नौसादर (सोना जैसे धातु को गलाने वाला पदार्थ)का उपयोग करने लगें और उत्पाद बढा लिए। यह शराब पुरे डोमचांच प्रखण्ड के प्रमुख कस्बों मे पहुचाया जाता था। पुलिस की कमीशन थाने पहुच जाया करते थे। और धंधा अच्छा चल रहा था।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति द्वारा डोमचांच प्रखण्ड को माडल प्रखण्ड बनाने की प्रकृया सन् 2011 से डोमचांच मे शुरु की गई और क्षेत्र का अघ्ययन कर काम प्रारम्भ किया गया। ईसी कडी में डोमचांच के महथाडीह गांव की रुबी देवी ने मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यक्रम में वारणसी में हिस्सा ले कर आई। और मन में नई उम्मीद के साथ गांव को नया रुप देने के उद्देश्य से गांव में कुछ महिलाओं को ले कर महिला अधिकार समिति नामक महिला समुह का गठन स्थानिय संस्था संग्राम के मदद से की और अपने कार्य मे पहला मिशन गांव मे शराब बंदी का रखी। जब यह बात क्षेत्र मे आग की तरह फैला तो कई लोंगों ने अपनी प्रतिकृया मे यही कहा कि कई लोग आये और चले गयें पर महथाडीह का ईतिहास कोई नही बदल सका। ये लोग आज नये अवतरित हुए है ईनको भी देख लेगें। जिसका उदाहरण था कि क्षेत्र की स्थानिय संस्था संग्राम ने भी अपने स्थापना काल मे यह प्रयास कर के थक गई थी और ईस काम को छोड दिया था।वही और भी कई संस्था के लोग जैसे आदर्श महिला विकास समिति,गाय़़़त्री परिवार, और कई आये पर किसी ने भी ईनका बाल बाका नहीं कर सका। ईसी कडी को महिला अधिकार समिति ने भी आगे बढाया और गांव में शराब नही बनाने के खिलाफ मोर्चा खोल कर कई लोंगों के घर घुस कर शराब के भठ्ठियों को तोडा और उनके खिलाफ थाने मे मामला दर्ज कराई। और कार्यवाही को जारी रखा। ईस बीच संगठन की महिलाओं को कई धमकीयाॅ और कितने मामले महिलाओं पर दर्ज हुए तो महिलाओं ने भी कितने मामले शराब बनाने वालों पर दर्ज कराई। शिलशिला जारी रहा और अंततः चार से छः महीने के कडे संघर्ष के बाद उन महिलाओं ने गाॅव मे शराब बनाने के मुद्दे पर काबू पा लिया।
उस गंाव में अब शराब नही बनता और जो लोग बनाते थे उन लोंगों ने बनाना छोड दिया और दुसरे दुसरे कार्य में लग गये। पर गाॅव में अब भी कई लोंग बचे है जो अब दुर के गाॅव में शराब बनातें है। और दुसरे जगह बेचते है। मतलब अब ईस गांव में मात्र पीने वाले ही लोग बचे है। बनाने वाले लगभग 5 प्रतिशत लोग विस्थापित हो गये। बाकी लोंगों ने शराब बनाना ही छोड दिया।
इसी कडी को आगे बढाते हुए गाॅव के धर्मावलम्बी लोंगों ने गांव के मंदिर (देवी मडप) का कायाकल्प करने की ठानी और पुरे गाॅव के लोगों ने चंदा दे कर एक सुन्दर मंदिर का निर्माण किया। जिसका प्राण प्रतिष्ठा वाराणसी के विद्वान पंडितों द्वारा किया गया। ईस मंदिर निर्माण की प्रकिृया के दौरान गांव मे पूर्ण रुप से शराब पीना व बेचना बंद था। जिसका प्रभाव यह पडा कि कई लोंगों ने धर्म के नाम पर शराब पीना भी छोड दिये। अब ईस गांव मे शराब पीने वाले की संख्या मे भी कमी आई। और शराब पी कर रोज होने वाले झगडे में कमी आई। और महिला हिंसा व महिला उत्पीडन के मामलों में भी कमी अई। इस कार्य को फिर कई लोंगों ने सराहा।  

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